Uber, Ola जैसे ऐप्स का छलावा! सरकार ने Zepto समेत 11 कंपनियों को भेजा नोटिस, ‘डार्क पैटर्न’ बना मुसीबत

आज के जमाने में जब हर चीज मोबाइल पर हो रही है, लोग बड़ी आसानी से ऑनलाइन ऐप्स और वेबसाइट्स पर भरोसा कर लेते हैं। पर क्या हो अगर यही भरोसा किसी जाल में फँसाने का ज़रिया बन जाए? जी हां, सरकार ने अब Zepto, Uber, Ola, Rapido जैसी 11 कंपनियों को नोटिस भेजा है। आरोप है कि ये कंपनियाँ ‘डार्क पैटर्न’ नाम की चालाकी से यूजर्स को भ्रमित कर रही हैं।

क्या होता है ‘डार्क पैटर्न’?

‘डार्क पैटर्न’ एक ऐसी तकनीक होती है जिसमें ऐप या वेबसाइट का डिज़ाइन इस तरह तैयार किया जाता है कि यूजर को बिना उसकी मर्जी के कोई कदम उठाने पर मजबूर कर दिया जाए। जैसे आपने कभी देखा होगा कि आपने कुछ खरीदा ही नहीं और आपके पैसे कट गए, या कोई सब्सक्रिप्शन अपने आप चालू हो गया। ये सब इसी ‘डार्क पैटर्न’ का हिस्सा है।

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सरकार के मुताबिक, ऐसे पैटर्न से ग्राहक की मर्जी को नजरअंदाज किया जाता है और उसे फँसाया जाता है। और इसी कारण अब Zepto, Uber, Ola जैसी कंपनियाँ कटघरे में हैं।

सरकार ने क्यों भेजा नोटिस Uber, Ola और Zepto को

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने इन कंपनियों को चेतावनी दी है कि अगर इन्होंने अपनी चालाकी नहीं रोकी तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। सरकार ने कंपनियों से कहा है कि वे अपने सिस्टम का आंतरिक ऑडिट करें और जांचें कि कहीं उनके प्लेटफॉर्म पर ‘डार्क पैटर्न’ तो नहीं इस्तेमाल हो रहा। Uber, Ola, Zepto और बाकी कंपनियों से रिपोर्ट मांगी गई है कि वे बताएँ कि उन्होंने अपने ग्राहकों के साथ कैसा बर्ताव किया।

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डार्क पैटर्न के 13 अवतार, जिनसे हो रही है जनता की जेब ढीली

सरकार ने अब तक 13 तरह के ‘डार्क पैटर्न’ की पहचान की है। इनमें सबसे ज्यादा आम हैं – झूठी जल्दीबाजी दिखाना (जैसे “सिर्फ 1 सीट बची है”), बिना बताये कार्ट में प्रोडक्ट जोड़ देना, छिपे हुए चार्ज लगाना, सब्सक्रिप्शन अपने आप चालू कर देना, और ऐसा इंटरफेस बनाना जिससे यूजर ना चाहकर भी किसी विकल्प को चुन ले।

Zepto जैसे ई-ग्रोसरी प्लेटफॉर्म्स और Ola/Uber जैसी कैब सर्विसेस पर भी इसी तरह के ट्रिक्स अपनाने के आरोप हैं। कई बार यूजर जब कोई कैब बुक करता है, तब आखिरी में टैक्स या चार्ज जुड़ जाते हैं, जो शुरुआत में दिखते ही नहीं। यह भी एक ‘डार्क पैटर्न’ का उदाहरण है।

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सरकार का कड़ा रुख और कंपनियों की ज़िम्मेदारी

उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने एक अहम बैठक में कहा कि अब कंपनियों को अपनी जिम्मेदारी खुद निभानी होगी। चाहे वो Zepto हो या Uber, अगर ये कंपनियाँ उपभोक्ताओं को गुमराह करेंगी, तो सरकार उन्हें छोड़ने वाली नहीं है।

सचिव निधि खरे ने साफ शब्दों में कहा कि ये डार्क पैटर्न कोई गलती नहीं बल्कि सोच-समझकर बनाया गया सिस्टम है। इनसे न केवल ग्राहक को नुकसान होता है, बल्कि उनका भरोसा भी टूटता है।

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ग्राहकों के हक की रक्षा के लिए संयुक्त कार्य समूह

सरकार अब एक साझा कार्य समूह बना रही है, जिसमें सरकार, कंपनियाँ और उपभोक्ता संगठन मिलकर इन डार्क पैटर्न्स को खत्म करने की रणनीति तैयार करेंगे। इसका मकसद है कि हर यूजर को अपने फैसले खुद लेने की आज़ादी मिल सके, और कोई तकनीकी चालाकी उसका शोषण न कर सके।

ग्रामीण और कस्बाई भारत को भी सतर्क रहने की ज़रूरत

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गाँव और छोटे शहरों के लोग भी आजकल Ola, Uber और Zepto जैसे ऐप्स का खूब इस्तेमाल करते हैं। लेकिन तकनीकी जानकारी की कमी के कारण वही लोग सबसे ज्यादा इन ‘डार्क पैटर्न’ के शिकार होते हैं। सरकार का ये कदम ऐसे आम ग्राहकों के लिए राहत की खबर है।

अब जरूरत है कि हर कोई, चाहे शहर में हो या गाँव में, डिजिटल जागरूकता बढ़ाए और बिना पूरी जानकारी के कोई बटन न दबाए। Uber, Ola और Zepto जैसे बड़े ब्रांड्स पर अब सरकार की नजर है, और अगर उन्होंने अपनी चालाकी नहीं छोड़ी, तो बड़ा झटका लग सकता है।

Zepto, Uber और Ola जैसी कंपनियाँ चाहे जितना भी बड़ा नाम बना लें, अगर वे ‘डार्क पैटर्न’ जैसी चालाकियाँ करेंगी, तो सरकार उन्हें पकड़ने से पीछे नहीं हटेगी। अब वक्त आ गया है कि जनता भी डिजिटल दुनिया में होशियार हो, हर चीज़ दो बार पढ़े और फिर ही कोई फैसला ले।

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और कंपनियों के लिए यह सीधा संदेश है – भरोसा तोड़ोगे, तो सज़ा जरूर मिलेगी! जो ऐप्स यूजर्स को उल्लू बना रहे थे, अब उन्हीं की गर्दन सरकार के शिकंजे में है। देखना ये है कि अब Zepto, Uber और Ola जैसे ब्रांड अपनी छवि बचाने के लिए कौन से नए पत्ते खेलते हैं।

डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सूचना के लिए है। किसी भी निर्णय से पहले स्वयं शोध करें। लेखक या प्रकाशक गलत जानकारी या नुकसान के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं।

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