क्या आपको भी लगता है कि 5-star safety rating वाली गाड़ी मतलब टेंशन फ्री जिंदगी? तो ज़रा होशियार हो जाइए! क्योंकि असली ज़िंदगी के एक्सीडेंट टेस्ट लैब की रिपोर्ट से अलग होते हैं। 5-स्टार रेटिंग भले ही कानों को सुकून दे, लेकिन हर बार जान नहीं बचा पाती। चलिए, अब इस गलतफहमी से पर्दा उठाते हैं और जान लेते हैं कि किन हालातों में ये महंगी और सेफ मानी जाने वाली गाड़ियां भी फेल हो जाती हैं।
सेफ्टी रेटिंग की हकीकत क्या है?
आजकल मार्केट में जब कोई गाड़ी 5-star rating के साथ आती है, तो लोग उसे सुपरमैन समझ लेते हैं। लेकिन ये रेटिंग खास टेस्टिंग कंडीशन में दी जाती है, जहां स्पीड, एंगल, इम्पैक्ट सभी कुछ सीमित होते हैं। हकीकत में सड़क पर हादसे कैसे और कहां होंगे, इसका कोई अंदाज़ा नहीं होता। इसीलिए जरूरी है कि हम रेटिंग पर आंख मूंदकर भरोसा करने की बजाय असली सिचुएशन्स को समझें।
1. जब रफ्तार बन जाए जान का दुश्मन
क्रैश टेस्ट्स आमतौर पर 64 किमी/घंटा की स्पीड पर किए जाते हैं। लेकिन भारत की सड़कों पर लोग 80, 100 या 120 तक भी गाड़ी भगाते हैं। ऐसे में अगर हादसा हो गया, तो गाड़ी का स्ट्रक्चर पूरी तरह टूट सकता है। एयरबैग और क्रंपल ज़ोन जैसे सेफ्टी फीचर भी इस तेज टक्कर में जान नहीं बचा पाते। यानी रेटिंग अच्छी हो तो भी ज़िंदगी की गारंटी नहीं।
2. सीट बेल्ट – जान की सबसे पहली डोर
कई बार लोग सोचते हैं कि एयरबैग है तो सीट बेल्ट की ज़रूरत नहीं। लेकिन असलियत उल्टी है। अगर सीट बेल्ट नहीं लगी है, या सही से नहीं लगाई गई है, तो एयरबैग खुलने के बावजूद सिर, छाती या रीढ़ पर गंभीर चोट लग सकती है। ये इतनी घातक हो सकती है कि जान भी जा सकती है।
3. साइड या पीछे से लगी टक्कर? तो मुश्किल बढ़ सकती है
गाड़ियों का सेफ्टी टेस्ट ज़्यादातर फ्रंट इम्पैक्ट पर आधारित होता है। लेकिन जब टक्कर साइड या पीछे से होती है, और उसमें साइड एयरबैग या मजबूत स्ट्रक्चर न हो, तो चोटें ज्यादा गंभीर हो सकती हैं। खासतौर पर छोटी और हल्की गाड़ियों में ये खतरा और बढ़ जाता है।
4. ओवरलोडिंग – एक्स्ट्रा वजन से घटती है सुरक्षा
अगर आप सोचते हैं कि चलो भाई गाड़ी में चार की जगह छह लोग बैठा लें, तो यह फैसला जानलेवा साबित हो सकता है। ओवरलोड होने से गाड़ी का बैलेंस, ब्रेकिंग और कंट्रोल सिस्टम गड़बड़ा सकता है। और जब ज़रूरत पड़ी, तो सेफ्टी फीचर्स भी समय पर काम न करें।
5. रोलओवर – जब गाड़ी पलट जाए तो कुछ नहीं कर पाएगी रेटिंग
टायर फटना, गलत मोड़ पर तेज स्पीड या गड्ढों में तेज रफ्तार से चलाना – ये सब गाड़ी को पलटने का कारण बन सकते हैं। अगर ऐसे वक्त पर गाड़ी में Electronic Stability Control (ESC) या Anti-Rollover टेक्नोलॉजी न हो, तो हालात बेकाबू हो जाते हैं। साथ ही, समय पर सर्विसिंग न होने से ब्रेक या एयरबैग सिस्टम भी धोखा दे सकते हैं।
तो फिर 5-Star गाड़ी लेना बेकार है क्या?
नहीं, बिल्कुल नहीं! 5-star रेटिंग वाली गाड़ी ज़रूर बाकी से बेहतर होती है, लेकिन उसे भगवान मत मान लीजिए। ये एक बेसिक सुरक्षा गारंटी है, लेकिन उससे भी ज्यादा ज़रूरी है खुद का समझदार ड्राइविंग व्यवहार। सीट बेल्ट लगाइए, लिमिट में गाड़ी चलाइए, सर्विसिंग टाइम पर कराइए और गाड़ी को ऑवरलोड मत कीजिए।
गाड़ी चाहे कितनी भी महंगी या सेफ हो, एक्सीडेंट में जान तभी बचेगी जब आप खुद समझदारी से चलाएंगे। 5-star rating कोई अमरता का प्रमाणपत्र नहीं, बस एक भरोसे की पहली सीढ़ी है। तो अगली बार जब आप सड़क पर निकलें, तो सेफ्टी फीचर्स के भरोसे मत बैठिए… थोड़ा खुद भी सेफ्टी अपनाइए, वरना सड़क पर कोई भी 5-star आपकी जान नहीं बचा पाएगी।
डिस्क्लेमर: यह लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारियां अलग-अलग स्रोतों पर आधारित हैं और इसका उद्देश्य किसी भी वाहन निर्माता कंपनी या उनके प्रोडक्ट को नीचा दिखाना नहीं है। सड़क सुरक्षा आपके अपने जिम्मेदार व्यवहार पर सबसे अधिक निर्भर करती है। हमेशा सतर्क और नियमों का पालन करते हुए वाहन चलाएं।