इतनी तो कई देशों की पूरी GDP नहीं, जितना भारत ने चालानों में झोंक दिया!

हम भारतीयों को सड़क पर नियम तोड़ने का ऐसा चस्का लग चुका है कि चालान के आंकड़े अब कई देशों की जीडीपी को भी टक्कर देने लगे हैं। जी हां, आपने सही पढ़ा! ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाने में हम इतने आगे निकल गए हैं कि हमारी चालानी रकम वानूआतू, समोआ और डोमिनिका जैसे देशों की पूरी साल की कमाई से भी ज्यादा है।

ट्रैफिक चालान में भारत की ‘GDP’ वाली कमाई
साल 2024 में पूरे देश में ट्रैफिक नियम तोड़ने पर कुल 12,000 करोड़ रुपये के चालान काटे गए हैं। यह आंकड़ा सुनकर पहले तो हैरानी होती है, लेकिन जब आप भारत की सड़कों पर नियमों का हाल देखते हैं, तो ये बिलकुल सच मालूम पड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार, इन 12,000 करोड़ में से सिर्फ 25 फीसदी रकम ही अब तक वसूली गई है और बाकी 9,000 करोड़ रुपये अब भी बकाया पड़े हैं। यानी एक तरफ सरकार नियम तोड़ने वालों से सख्ती बरत रही है, दूसरी ओर लोग चालान भरने से कतराते नजर आ रहे हैं।

छोटे देशों की GDP भी पीछे छूट गई
अब जरा इस आंकड़े की तुलना करें तो समझ में आएगा कि हम किस लेवल पर चालान कटवा रहे हैं। जिन देशों की पूरी जीडीपी 12,000 करोड़ रुपये से कम है, उनमें वानूआतू, समोआ, डोमिनिका, पलाउ और किरिबाती जैसे नाम शामिल हैं। यानी हम हिंदुस्तानियों ने एक साल में जितना चालान कटवाया, उतनी तो ये देश पूरी साल में कमाते हैं। अब इसे सड़क पर ‘रफ्तार का जुनून’ कहें या ‘नियमों की धज्जियां’, लेकिन हकीकत यही है।

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महज 11 करोड़ वाहन मालिक और इतना बड़ा जुर्माना
CARS24 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की 140 करोड़ की जनसंख्या में से केवल 11 करोड़ लोगों के पास वाहन हैं। यानी देश की बहुत ही कम आबादी इतने बड़े चालान के लिए जिम्मेदार है। इससे साफ झलकता है कि ट्रैफिक नियमों का पालन न करने की आदत कितनी गहरी बैठ चुकी है। और मजेदार बात ये कि अधिकतर लोग ट्रैफिक नियमों को पालन ‘इच्छा’ से नहीं, बल्कि ‘डर’ से करते हैं।

पुलिस दिखी तो बन गए शरीफ ड्राइवर
रिपोर्ट बताती है कि 43.9% लोगों ने यह माना कि वे केवल तब ही नियमों का पालन करते हैं जब पुलिसकर्मी नज़रों के सामने हो। वहीं 31.2% ड्राइवर ऐसे भी हैं जो सड़क पर पहले नज़र दौड़ाते हैं कि कहीं खाकी वर्दी दिख रही है या नहीं, फिर उसी हिसाब से अपनी ड्राइविंग को ढालते हैं। हालांकि, 17.6% लोग ऐसे भी हैं जो जुर्माने से बचने के लिए ही सही, लेकिन हमेशा नियमों का पालन करते हैं। कुल मिलाकर बात ये निकलकर आती है कि देश में ट्रैफिक अनुशासन का पालन लोगों की आदत नहीं बल्कि मजबूरी बन चुकी है।

रास्ता बदल लो, चालान से बच लो!
अब आप सोच रहे होंगे कि क्या लोग वाकई चालान से बचने के लिए इतना कुछ करते हैं? तो जवाब है – हां! सर्वे में सामने आया कि 51.3% लोग ट्रैफिक पुलिस को देखते ही सबसे पहले अपनी स्पीड जांचते हैं और देख लेते हैं कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं कर रहे। 34.6% लोग बिना कुछ सोचे-समझे सीधा अपनी गाड़ी स्लो कर लेते हैं, भले ही वो कोई नियम न तोड़ रहे हों। और 12.9% लोग तो एक कदम और आगे जाकर या तो रास्ता ही बदल लेते हैं या अपना पूरा ड्राइविंग पैटर्न चेंज कर देते हैं, ताकि कहीं भी पुलिस की नजर में न आ जाएं।

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सवाल है आदत बदलने का, सिस्टम नहीं
इस रिपोर्ट ने एक बड़ी सच्चाई सामने रख दी है – हमारा ट्रैफिक सिस्टम नहीं, हमारी सोच बदलने की जरूरत है। अगर पुलिस की गैर-मौजूदगी में नियम टूटते हैं, तो यह सवाल हर नागरिक से है कि क्या हमें नियमों की इज्जत सिर्फ पुलिस के डर से करनी चाहिए? देश की सड़कें सुरक्षित तभी बनेंगी जब नियम पालन आदत में शामिल होगा, न कि डर से।

तो भाइयों और बहनों, अगर अब भी आप सोचते हैं कि “भैया चालान कौन भरता है”, तो ज़रा इस 12,000 करोड़ की रकम को याद रखिए। क्योंकि अगली बार जब आप बिना हेलमेट निकलेंगे, रेड लाइट तोड़ेंगे या ओवरस्पीड में भागेंगे, तो समझ लीजिए कि आप भी उस करोड़ों के चालान वाले ‘महागाथा’ का हिस्सा बन रहे हैं। सुधार चाल में लाइए, नहीं तो सरकारी चालान आपसे खुद जुबान खोलकर कहेगा – “भैया, अब तो पेमेंट करो!”

डिस्क्लेमर:
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