अब बात सिर्फ राजनीति या पढ़ाई की नहीं रही, उत्तर प्रदेश अब इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में भी देश में नंबर वन बन गया है। जी हां, इलेक्ट्रिक स्कूटर और ई-रिक्शा की दौड़ में यूपी ने दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को भी पीछे छोड़ दिया है। ऐसे दौर में जब हर राज्य इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर तेजी से बढ़ रहा है, यूपी ने अपने दम पर नया रिकॉर्ड कायम कर दिया है।
उत्तर प्रदेश में इलेक्ट्रिक स्कूटर और ई-रिक्शा की धूम
अगर बात करें पूरे देश की, तो इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक यूपी में 4.14 लाख से भी ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहन दौड़ रहे हैं, जिसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी इलेक्ट्रिक स्कूटर और ई-रिक्शा की है। वहीं दिल्ली में सिर्फ 1.83 लाख और महाराष्ट्र में 1.79 लाख इलेक्ट्रिक वाहन हैं। ये आंकड़े साफ दिखाते हैं कि यूपी वाले इस बार भी सबसे आगे निकल गए हैं।
यूपी के गांव-शहरों में आजकल हर गली में आपको एक ना एक इलेक्ट्रिक स्कूटर या ई-रिक्शा जरूर मिल जाएगा। खासकर अयोध्या, काशी, मथुरा, प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद और नोएडा जैसे शहरों में इन वाहनों की भरमार है। सस्ते, किफायती और पर्यावरण के लिए फायदेमंद होने की वजह से आम लोग अब इन्हें हाथों-हाथ अपना रहे हैं।
ईवी नीति ने बदली तस्वीर
उत्तर प्रदेश की इस कामयाबी के पीछे एक बड़ी वजह है राज्य की इलेक्ट्रिक वाहन नीति। साल 2022 में योगी सरकार ने एक नई EV मैन्युफैक्चरिंग और ट्रांसपोर्ट पॉलिसी लागू की थी। इस नीति का मकसद था ईवी अपनाने को बढ़ावा देना, चार्जिंग स्टेशन का मजबूत नेटवर्क बनाना और राज्य को EV और बैटरी निर्माण का हब बनाना।
इस पॉलिसी के जरिए सरकार 30 हजार करोड़ रुपये का निवेश लाना चाहती है और साथ ही 10 लाख से ज्यादा रोजगार के मौके भी पैदा करना चाहती है। इसका असर अब जमीन पर नजर आने लगा है, जहां लाखों लोग इलेक्ट्रिक स्कूटर और ई-रिक्शा को अपने रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बना चुके हैं।
ई-रिक्शा ने बदला ट्रांसपोर्ट का चेहरा
उत्तर प्रदेश में इलेक्ट्रिक वाहनों की इस बढ़ती संख्या में सबसे बड़ी भागीदारी ई-रिक्शा की है। ये तीन पहिया वाहन अब शहरी और कस्बाई इलाकों में लोगों की पहली पसंद बन चुके हैं। एक तो ये पेट्रोल-डीजल की महंगाई से छुटकारा दिलाते हैं, ऊपर से मेंटेनेंस भी कम और चलाने में आसान होते हैं। यही वजह है कि इलेक्ट्रिक स्कूटर और ई-रिक्शा की बिक्री में 85% हिस्सा यूपी में इन्हीं वाहनों का है।
कहीं स्कूल जाने वाले बच्चे हों, कहीं मंदिरों के दर्शन को आए श्रद्धालु या फिर बाजार के ग्राहक, हर कोई अब ई-रिक्शा का ही सहारा ले रहा है। और इसी वजह से यूपी में इलेक्ट्रिक स्कूटर और ई-रिक्शा की मांग आसमान छू रही है।
चार्जिंग स्टेशन की भी तैयारी फुल ऑन
कोई भी इलेक्ट्रिक वाहन बिना चार्जिंग स्टेशन के अधूरा है। ये बात यूपी सरकार ने समय रहते समझ ली थी। इसलिए केंद्र सरकार की FAME I और FAME II योजनाओं का सही फायदा उठाते हुए राज्य में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी खूब ध्यान दिया गया है।
सरकार ने हाल ही में 16 नगर निकायों में 300 से ज्यादा नए चार्जिंग स्टेशन बनाने का ऐलान किया है, जिनमें सबसे ज्यादा अयोध्या में लगाए जाएंगे। यह इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि अयोध्या अब पर्यटन का बड़ा केंद्र बन चुका है और वहां ई-रिक्शा और इलेक्ट्रिक स्कूटर की मांग दिन पर दिन बढ़ रही है।
2030 तक 10 करोड़ ईवी का लक्ष्य, यूपी तैयार
एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक देश में 10 करोड़ से ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहन सड़कों पर होंगे। इसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी दोपहिया और तिपहिया वाहनों की ही होगी, जो यूपी जैसे राज्यों में तेजी से अपनाए जा रहे हैं। हालांकि इन वाहनों की चार्जिंग ज्यादातर लोग घर पर ही कर लेते हैं, फिर भी सरकार ने पब्लिक चार्जिंग स्टेशन की संख्या बढ़ाने पर पूरा जोर लगा रखा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इस दिशा में रुचि दिखा रहे हैं और उन्होंने सभी संबंधित विभागों को आदेश दिया है कि फास्ट चार्जिंग स्टेशन का जाल पूरे राज्य में बिछाया जाए। इससे न सिर्फ यात्रा आसान होगी, बल्कि ईवी अपनाने वालों को भी मानसिक सुकून मिलेगा।
जब बात हो आगे निकलने की, तो यूपी वाले पीछे कैसे रह सकते हैं। पढ़ाई हो, खेती हो या अब इलेक्ट्रिक स्कूटर और ई-रिक्शा का मामला, हर बार यूपी वालों ने दिखा दिया है कि वो किसी से कम नहीं। दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे शहरों को पछाड़कर 4.14 लाख से ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहन का आंकड़ा पार करना कोई मामूली बात नहीं।
अब जब यूपी की सड़कें इलेक्ट्रिक स्कूटर और ई-रिक्शा से पट रही हैं, तो बाकी राज्य भी इससे सीख ले सकते हैं। और जैसा कि गांव की कहावत है, “जिसकी चाल में बिजली हो, उसी की होती है अगुवाई” — तो अब तय है, इलेक्ट्रिक व्हीकल की दौड़ में यूपी ही बनेगा सरताज।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सूचना के लिए है। किसी भी निर्णय से पहले स्वयं शोध करें। लेखक या प्रकाशक गलत जानकारी या नुकसान के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं।